सोराइसिस से पा सकते हैं मुक्ति जाने कैसे

कुछ रोग ऐसे होते हैं जो लंबे समय तक रोगी को परेशान करते हैं. इनमे से एक प्रमुख रोग है सोरायसिस. कई बार देखा गया है कि लंबे समय तक इलाज के बावजूद ये ठीक नहीं हो पाता है. ऐसे में रोगी निराश हो जाते हैं. सोरायसिस एक ऐसा ही रोग है, जो आॅटो इम्यून डिसआॅर्डर है. अगर सही तरीके से धैर्य रख कर इलाज कराया जाये, तो इस रोग से भी छुटकारा पाया जा सकता है. इसके उपचार के बारे में बता रहे हैं । 
एस आर वेद ।
सोरायसिस क्रॉनिक यानी बार बार होनेवाला आॅटोइम्यून डिजीज है, जो शरीर के अनेक अंगो को प्रभावित करता है. यह मुख्य रूप से त्वचा पर दिखाई देता है, इसलिए इसे चर्म रोग ही समझा जाता है. यह किसी भी उम्र में हो सकता है. एक आंकड़े के मुताबिक दुनिया भर में लगभग एक प्रतिशत लोग इस रोग से पीड़ित हैं. यह रोग किसी भी उम्र में शुरू हो सकता है पर अकसर 20-30 वर्ष की आयु में अधिक आरंभ होता है. 5-10 प्रतिशत रोगियों में परिवार के अन्य सदस्य को भी इस रोग से पीड़ित पाया गया है. आयुर्वेद में सोरायसिस को मंडल कुष्ठ के अन्तर्गत रखा गया है । इसे किटिभ कुष्ठ जैसे अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है. बोलचाल की भाषा में कुछ लोग इसे छाल रोग भी कहते हैं. मॉडर्न साइंस इसे ऑटो एम्यून , यानी रोग प्रतिरोधक प्रणाली की गड़बड़ी को इसका कारण माना जाता है. आयुर्वेद में विरुद्ध आहार या असंतुलित खान-पान के कारण पित्त और कफ दोषों में होनेवाली विकृति को इसका कारण बताया गया है. त्वचा की सबसे बाहरी परत (एपिडर्मिस) की कोशिकाएं कम समय में ही परिपक्कु होकर झड़ने लगती हैं।

सोरायसिस में कोशिकाओं का निर्माण असामान्य रूप से तेज हो जाता है और नयी कोशिकाएं  जगह चार-पांच दिनों में बन कर मोटी चमकीली परत के रूप में दिखाई पड़ती हैं और आसानी से झड़ने लगती है. चोट लगने, संक्रामक रोग के बाद या अन्य दवाओं के कुप्रभाव के कारण भी सोरायसिस की शुरुआत होती है. इस रोग के लक्षण  सोरायसिस कोहनी, घुटनों, खोपड़ी, पीठ, पेट, हाथ, पांव की त्वचा पर अधिक होता है. शुरुआत में त्वचा पर रूखापन आ जाता है, लालिमा लिये छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं. ये दाने मिल कर छोटे या फिर काफी बड़े चकत्तों का रूप ले लेते है. चकत्तों की त्वचा मोटी हो जाती है.  हल्की या तेज खुजली होती है. खुजलाने से त्वचा से चमकीली पतली परत निकलती है. परत निकलने के बाद नीचे की त्वचा लाल दिखाई पड़ती है और खून की छोटी बूंदे दिखाई पड़ सकती हैं. खोपड़ी की त्वचा प्रभावित होने पर यह कभी रूसी की तरह या अत्यधिक मोटी परत के रूप में दिखाई पड़ती है. नाखूनों के प्रभावित होने पर उनमें छोटे-छोटे गड्ढे हो सकते हैं. विकृत हो कर मोटे या टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं. नाखून पूरी तरह नष्ट भी हो सकते हैं.  लगभग 20% सोरायसिस के पुराने रोगियों के जोड़ों में दर्द और सूजन भी हो जाती है, जिसे सोरायटिक आर्थराइटिस के नाम से जाना जाता है. अधिकांश रोगियों में रोग के लक्षण ठंड के समय में बढ़ जाते हैं. पर कुछ रोगियों को गरमी के महीने में अधिक परेशानी होती है. तनाव, शराब के सेवन या धूम्रपान से भी लक्षण बढ़ जाते हैं. अधिक प्रोटीन युक्त भोजन जैसे-मांस, सोयाबीन, दालों के सेवन से भी रोग के लक्षणों में वृद्धि हो सकती है. यह छूत की बीमारी नहीं है. जिद्दी त्वचा रोग है सोरायसिस सोरायसिस एक आॅटो इम्यून डिजीज है, जिसमें त्वचा पर चकत्ते पड़ जाते हैं और उनमें खुजली होती है. यह रोग काफी जिद्दी है और लंबे समय तक परेशान करता है. अगर धैर्य रख कर इसका उपचार सही तरीके से कराया जाये, तो इससे छुटकारा मिल सकता है. आयुर्वेद से इसके ठीक होने की संभावना अधिक होती है. रोग के अनेक प्रकार प्लाक सोरायसिस : लगभग 70-80 % रोगी प्लाक सोरायसिस से ही ग्रस्त होते हैं. इसमें कोहनियों, घुटनों, पीठ, कमर, पेट और खोपड़ी की त्वचा पर रक्तिम, छिलकेदार मोटे धब्बे या चकत्ते निकल आते हैं. इनका आकार दो-चार मिमी से लेकर कुछ सेमी तक हो सकता है. गट्टेट सोरायसिस : यह अकसर कम उम्र के बच्चों के हाथ पांव, गले, पेट या पीठ पर छोटे -छोटे लाल दानों के रूप में दिखाई पड़ता है. प्रभावित त्वचा प्लाक सोरायसिस की तरह मोटी परतदार नहीं होती है. अनेक रोगी स्वत: या इलाज से चार-छह हफ्तों में ठीक हो जाते हैं. पर कभी-कभी ये प्लाक सोरायसिस में परिवर्तित हो सकते हैं पामोप्लांटर सोरायसिस : यह मुख्य रूप से हथेलियों और तलवों को प्रभावित करता है.  पुस्चुलर सोरायसिस: इस प्रकार में अकसर हथेलियों, तलवों या कभी-कभी पूरे शरीर में लालिमा से घिरे दानों में मवाद हो जाता है.  एरिथ्रोडार्मिक सोरायसिस : इस प्रकार के सोरायसिस में चेहरे समेत शरीर की 80 प्रतिशत से अधिक त्वचा पर जलन के साथ लालिमा लिये चकत्ते हो जाते हैं. शरीर का तापमान असामान्य हो जाता है, हृदय गति बढ़ जाती है और समय पर उचित चिकित्सा नहीं होने पर रोगी के प्राण जा सकते हैं.  इन्वर्स सोरायसिस : इसमे स्तनों के नीचे, बगल, कांख या जांघों के उपरी हिस्से में लाल बड़े-बड़े चकते बन जाते हैं. होमियोपैथी में उपचार सोरायसिस इम्युनिटी में गड़बड़ी के कारण होता है, इसलिए इसका उपचार करने का सबसे अच्छा तरीका इम्युनिटी में सुधार करना ही है. अत: इम्युनिटी को सुधारने के लिए सोरिनम सीएम शक्ति की दवा चार बूंद महीने में एक बार लें.  काली आर्च : अगर त्वचा से रूसी निकले, नोचने पर और अधिक निकले, रोग जोड़ों पर अधिक हो, तो काली आर्च 200 शक्ति की दवा चार बूंद रोज सुबह में दें. पामर या प्लांटर सोरायसिस : अगर सोरायसिस हथेली या तलवों तक ही सीमित हो, तो इसके लिए सबसे अच्छी दवा फॉस्फोरस है. इसकी 200 शक्ति की दवा चार बूंद सप्ताह में एक बार लें. काली सल्फ : सोरायसिस सिर में भी होता है. सिर की त्वचा से सफेद रंग की रूसी निकले और गोल-गोल चकत्ते जैसे हों, तो काली सल्फ 200 शक्ति की दवा चार बूंद सप्ताह में एक बार लें. रोग को ठीक होने में लंबा समय लग सकता है. अत: धैर्य रख कर उपचार कराना जरूरी है. (होमियोपैथी विशेषज्ञ डॉ एस चंद्रा से बातचीत) सोरायसिस की चिकित्सा  यह एक हठीला रोग है, जो अकसर पूरी तरह से ठीक नहीं होता है. यदि एक बार हो गया, तो जीवन भर चल सकता है. अर्थात् रोग होता है, फिर ठीक भी होता है, लेकिन बाद में फिर हो जाता है. कुछ रोगियों में यह लगातार भी रह सकता है. हालांकि इसके कुछ रोगी अपने आप ठीक भी हो जाते हैं.  क्यों ठीक होते हैं अभी तक कारण अज्ञात है. कुछ नये रोगी धैर्य से खान-पान परहेज के साथ जीवनशैली में आवश्यक परिवर्तन और सावधानियों के साथ दवाओं से पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं अथवा रोग के लक्षणों से लंबी अवधि के लिए मुक्ति मिल जाती है. रोग के प्रारंभ में ही यदि आयुर्वेद विज्ञान से उपचार कराया जाता है, तो उपचार से रोग के ठीक होने की अधिक संभावना है. पुराने रोगियों को भी तुलनात्मक दृष्टि से कम खर्च में काफी राहत मिल जाती है. और रोगी बगैर परेशानी के सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है. एलोपैथ चिकित्सा प्रणाली में कुछ वर्षों पहले तक इसकी संतोषजनक चिकित्सा नहीं थी. विगत एक दशक में कई प्रभावकारी दवाएं विकसित हुई हैं, जिनके प्रयोग से लंबे समय तक रोग के लक्षणों से राहत मिल जाती है.  एलोपैथ चिकित्सा  साधारणतया सोरायसिस के लक्षण मॉश्च्यूराइजर्स या इमॉलिएंट्स जैसे-वैसलीन, ग्लिसरीन या अन्य क्रीम्स से भी नियंत्रित हो सकते हैं. यदि यह सिर पर होता है, तो विशेष प्रकार के टार शैंपू काम में लाये जाते हैं. मॉश्च्यूराइजर्स या अन्य क्रीम सिर और प्रभावित त्वचा को मुलायम रखते हैं. सिर के लिए सैलिसाइलिक एसिड लोशन और शरीर पर हो, तो सैलिसाइलिक एसिड क्रीम विशेष उपयोगी होती है. इसके अलावा कोलटार (क्रीम, लोशन, शैंपू) आदि दवाइयां उपयोगी होती हैं.  पुवा (पीयूवीए) थेरेपी : अल्ट्रावायलेट प्रकाश किरणों के साथ सोरलेन के प्रयोग से भी आंशिक  रूप से लाभ मिलता है पर रोग ठीक नहीं होता. बीमारी ज्यादा गंभीर हो, तब मीथोट्रीक्सेट और साइक्लोस्पोरिन नामक दवाओं से सामयिक और आंशिक लाभ होता है, पर हानिकारक प्रभावों के कारण लंबे समय तक इनके प्रयोग में अतिरिक्त सावधानी की आवश्यकता है. इसके अलावा कैल्सिट्रायोल और कैल्सिपौट्रियोल नामक औषधियों का भी बहुत अच्छा प्रभाव होता है. पर ये महंगी होने के कारण सामान्य आदमी की पहुंच से बाहर होती हैं.  सेकुकीनुमाब नाम की बयोलॉजिकल मेडिसिन से बेहतर परिणाम मिले हैं. इस दवा से काफी लाभ होता है. पर इसका खर्च प्रतिवर्ष लाखों में होने के बावजूद रोग से पूरी तरह छुटकारे की गारंटी नहीं है. ये सब दवाएं किसी विशेषज्ञ चिकित्सक की देखरेख में ही लेनी चाहिए. रोग के लक्षणों को दूर होने में लंबा समय लग सकता है. इस कारण रोगी को धैर्य रख कर इलाज कराना चाहिए. बीच में इलाज छोड़ने से समस्या और बढ़ सकती है और समस्या दूर होने में भी परेशानी हो सकता है.                            

बातचीत : अजय कुमार रोग होने पर क्या करें   विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह लें. एलोपैथ के साथ-साथ इस रोग में लाभकारी खानपान, जीवनशैली, आयुर्वेद तथा वनौषधियों के प्रयोग से इसमें लाभ मिलता है. नीम-हकीमों के और गारंटी से ठीक कर देनेवालों के चक्कर में अकसर धन और समय की हानि के साथ-साथ रोग की जटिलताएं बढ़ जाती हैं. क्या है आॅटोइम्यून डिजीज   आहार, विहार तथा जीवनशैली में गड़बड़ी के साथ-साथ निरंतर बढ़ते कृत्रिम रसायनों के उपयोग, प्रदूषण जैसे ज्ञात तथा अनेक अज्ञात कारणों से शरीर की रोग प्रतिरोधक शक्ति (इम्युनिटी) अपने ही शरीर के अंगो को हानि पंहुचाने लगती है और विभिन्न रोगों का कारण बनती है. इसे आप इस तरह समझ सकते हैं कि यदि पुलिस या सेना में विद्रोह हो जाये, तो वे नागरिक, समाज और देश की सुरक्षा के बजाय अपने ही नागरिकों और व्यवस्था के प्रति हिंसक हो जाते हैं. ठीक ऐसी ही घटना शरीर में भी होती है. इसी के कारण कोशिकाओं में तीव्र गति से वृद्धि होने लगती है. कुछ आॅटोइम्यून बीमारियां : रुमेटॉयड आर्थराइटिस, सोरायसिस, हासिमोटो, थायरॉयड, ल्यूपस एरिदोमेटेसिस, स्क्लेरोडर्मा, अल्सरेटिव कोलाइटिस, क्रोह्नस डिजीज, विटिलिगो, एलोपेसिया एयार्टा आदि अनेक रोग इस श्रेणी में आते हैं.  आयुर्वेद स्वास्थ्य विज्ञान में सोरायसिस की चिकित्सा के लिए अनेक औषधियों के विकल्प के साथ-साथ आहार-विहार, परहेज का विशेष ध्यान रखा जाता है. कभी-कभी शरीर में व्याप्त हानिकारक तत्वों को निकालने के लिए पंचकर्म नामक विशिष्ट चिकित्सा का प्रयोग काफी लाभ दायक होता है. उपयोगी जड़ी-बूटियां तथा आयुर्वेदिक दवाएं जैसे-घृतकुमारी, श्वेत कुटज, अमृता (गुडिच), नीम, करंज, मजीठ, सारिवा, खदिर, मंडुकपर्णी, कुटकी, नीम, हल्दी, कैशोर गुगलू, रस माणिक्य, महामंजिष्ठादी, पंचतिक्त घृत   प्रतिदिन 20-30 ग्राम तीसी (अलसी)  के सेवन के साथ इसके स्थानीय लेप से कई रोगियों को 70-80 प्रतिशत लाभ होने के अनुभव आये हैं. विज्ञान सम्मत तथा परीक्षित उपयोगी घरेलू चिकित्सा -नीम की पत्तियां या गुडिच के तने को पीस कर या उबाल कर सोरायसिस से प्रभावित अंग धोएं. -घृतकुमारी (एलोवेरा) का ताजा गूदा त्वचा पर लगाएं या इस गूदे का प्रतिदिन दो-तीन चम्मच दिन में दो बार सेवन करें. -प्रतिदिन 20-30 ग्राम तीसी (अलसी) का सेवन करने से भी लाभ होता है. -मांस, मुर्गा, अंडा, उड़द, मटर, सोयाबीन जैसे अधिक प्रोटीन युक्त भोजन न करें.  -कपालभाति और अनुलोम-विलोम का नियमित अभ्यास भी रोग से राहत देने में उपयोगी है. 

सोरायसिस, जानें संकेत और बचाव का तरीका
लेखक 
एस आर वेद 
सोरायासिस के लक्षण

सोरायसिस चमड़ी पर होने वाली एक ऐसी बीमारी है जिसमें त्वचा पर एक मोटी परत जम जाती है। सोरायसिस एक वंशानुगत बीमारी है लेकिन यह कई अन्य कारणों से भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में कहें तो हमारी c चमड़ी की सतही परत का अधिक बनना ही सोरायसिस है। त्वचा पर सोरायसिस की बीमारी सामान्यतः हमारी त्वचा पर लाल रंग की सतह के रूप में उभरकर आती है और स्केल्प (सिर के बालों के पीछे) हाथ-पांव अथवा हाथ की हथेलियों, पांव के तलवों, कोहनी, घुटनों और पीठ पर अधिक होती है। हालांकि यह रोग केवल 1-2 प्रतिशत लोगों में ही पाया जाता है।

आनुवांशिक रोग है सोरायसिस

यह रोग आनु्‌वंशिक भी हो सकता है। आनु्‌वंशिकता के अलावा इसके होने के लिए पर्यावरण भी एक बड़ा कारण माना जाता है। यह बीमारी कभी भी और किसी को भी हो सकती है। कई बार इलाज के बाद इसे ठीक हुआ समझ कर लोग निश्चिंत हो जाते हैं, लेकिन यह बीमारी दोबारा हो सकती है। सर्दियों के मौसम में यह बीमारी ज्यादा होती है।

छालरोग के नाम से जाना जाता है सोरायसिस

सोरायसिस को छालरोग भी कहा जाता है। इसमें त्वचा पर लाल दाग पड़ जाते हैं, कई बार इस रोग से पहले त्वचा पर बहुत अधिक खुजली होने लगती है। सोरायसिस की समस्या बहुत लोगों को होती है। एक आंकडे के मुताबिक दुनियाभर में लगभग 1 फीसदी लोग चर्मरोग या छालरोग से पीडि़त हैं। भारत में भी कुल जनसंख्या में से लगभग 1 फीसदी लोग सोरायसिस से पीडि़त हैं। हालांकि सोरायसिस का उपचार संभव है लेकिन इसके लिए जरूरी है कि इस रोग को बढ़ने से पहले ही उपचार किया जाए। सोरायसिस का घरेलू नुस्खों द्वारा भी उपचार किया जा सकता हैं लेकिन ध्यान रहे यदि इसका ठीक से उपचार नहीं किया जाए तो आपको त्वचा संबंधी और भी कई समस्याएं हो सकती हैं।

कैसे होता है सोरायसिस

हमारे शरीर में दिन-प्रतिदिन बदलाव होते रहते हैं जिनमें से अधिकांश का हमें अंदाजा भी नहीं होता। जैसे हमारे, नाखून, बाल इत्यादि बढ़ते हैं ठीक वैसे ही हमारी त्वचा में भी परिवर्तन होता है। जब हमारे शरीर में पूरी नयी त्वचा बनती है , तो उस दौरान शरीर के एक हिस्से में नई त्वचा 3-4 दिन में ही बदल जाती है। यानी सोरायसिस के दौरान त्वचा इतनी कमजोर और हल्की पड़ जाती है कि यह पूरी बनने से पहले ही खराब हो जाती है। इस कारण सोरायसिस की जगह पर लाल चकते और रक्त की बूंदे दिखाई पड़ने लगती है। हालांकि सोरायसिस कोई छूत की बीमारी नहीं हैं और ये ज्यादातर पौष्टिक आहार ना लेने की वजह से होती है। यदि आपके खानपान में पौष्टिक तत्वों की कमी है और आप घी-तेल भी बिल्कुल ना के बराबर खाते हैं तो आपको यह रोग हो सकता है। सोरायसिस त्वचा पर मॉश्चराइजर ना लगाने, त्वचा को चिकनाहट और पर्याप्त नमी ना मिलने के कारण भी होता है। त्वचा की देखभाल ना करना, बहुत अधिक तेज धूप में बाहर रहना, सुबह की हल्की धूप का सेवन न कर पाना इत्यादि कारणों से सोरायसिस की समस्या होने लगती हैं। सोरायसिस के उपचार के लिए कुछ दवाईयां का सेवन किया जा सकता है लेकिन इससे निजात पाने के लिए आपको त्वचा की सही तरह से देखभाल करना जरूरी है।

सोरायसिस के संकेत

सोरायसिस रोग के लक्षणों को आप आराम से पहचान सकते हैं। जब आपकी त्वचा पर छिल्केदार, लाल-लाल पपडि़या सी जमने लगे तो यही रोग सोरायसिस है। इस रोग की पहचान है कि यह त्वचा के किसी एक हिस्से से शुरू होता है और बाद में बढ़कर फैल जाता है। आमतौर पर यह रोग कोहनी, घुटनों, कमर इत्यादि जगहों पर होता है। साथ ही मौसम के लगातार परिवर्तन से भी सोरायसिस होने लगता हैं और सर्दियों में सोरायसिस की समस्या अधिक बढ़ जाता है। सोरायसिस रोग का उपचार संभव है लेकिन इसको पूरी तरह से ठीक नहीं किया जा सकता। कई बार इस रोग से पीडि़त रोगी स्वंय ही ठीक हो जाते हैं। सोरायसिस का निदान भी संभव है लेकिन सबसे पहली उसकी पहचान होना और लक्षणों के बारे में जानकारी होना जरूरी है।

सोरायसिस होने पर क्या करें

सोरायसिस होने या इसकी आशंका भी होने पर विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाएं और उसके द्वारा बताए अनुसार निर्देशों का पालन करते हुए उपचार कराएं ताकि रोग नियंत्रण में रहे। थ्रोट इंफेक्शन से बचें और तनाव रहित रहें, क्योंकि थ्रोट इंफेक्शन और स्ट्रेस सीधे-सीधे सोरायसिस को प्रभावित कर रोग के लक्षणों में वृद्धि करता है। त्वचा को अधिक खुश्क होने से भी बचाएँ ताकि खुजली उत्पन्न न हो। सोरायसिस के उपचार में बाह्य प्रयोग के लिए एंटिसोरियेटिक क्रीम/ लोशन/ ऑइंटमेंट की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। रोग की तीव्रता न होने पर साधारणतः मॉइस्चराइजिंग क्रीम इत्यादि से ही रोग नियंत्रण में रहता है। लेकिन जब बाहरी उपचार से लाभ न हो तो मुंह से ली जाने वाली एंटीसोरिक और सिमटोमेटिक औषधियों का प्रयोग आवश्यक हो जाता है। आजकल अल्ट्रावायलेट लाइट से उपचार की विधि भी अत्यधिक उपयोगी और लाभदायक हो रही है।

सोरायसिस प्रकृति से चिड़चिड़ा और अप्रत्याशित होता है, सोरायसिस त्वचा संबंधी विकारों में सबसे चिड़चिड़ा और परेशान करने वाली समस्याओं में से एक है।इस बीमारी में त्वचा कोशिका सामान्य विकास की तुलना में 10 गुना तेजी से वृद्धि करता है। चूंकि मृत अंतर्निहित कोशिकाएं त्वचा की सतह तक पहुंचती हैं, इसलिए उनके विशाल संचय के कारण लाल रंग के उभरे हुए प्लेक बनते है, जो सफेद परत से ढके होते हैं। यह बीमारी आम तौर पर एल्बो, घुटनों और सिर पर होती है। सोरायसिस, पैरों के हथेलियों, धड़ और तलवों को भी प्रभावित कर सकता है। सोरायसिस, समय पर सोराटिक गठिया से जुड़ा हुआ हो सकता है, जिससे जोड़ों में सूजन और दर्द होता है। यह अनुमान लगाया गया है कि भारत में 10 से 30 प्रतिशत लोग हैं, जो सोरायसिस के साथ सोराटिक गठिया से भी पीड़ित हैं।

सोरायसिस के अन्य रूपों में गट्टाेट सोरायसिस, इनवर्क्स सोरायसिस, एरिथ्रोडार्मिक सोरायसिस शामिल हैं।

यद्यपि गट्टाेट सोरायसिस अक्सर युवा उम्र और बचपन में शुरू होते हैं, इनवर्क्स सोरायसिस चमकदार लाल घावों की विशेषता है, जो त्वचा के तलहटो पर दिखाई देते हैं। हालांकि एरिथ्रोडार्मिक सोरायसिस समय-समय पर होता है और अक्सर प्रणालीगत सोरायसिस उपचार के छोड़ने, सनबर्न और किसी दवा से होने वाले संक्रमण के कारण बढ़ सकता है। ट्रामा, भावनात्मक तनाव और स्ट्रेप्टोकोकल संक्रमण जैसे समस्याएं भी सोरायसिस के कारण हो सकता है। इस बीमारी के हालिया अध्ययन से संकेत मिलता है कि प्रतिरक्षा प्रणाली में कुछ असामान्यता कारक है, जो इस बीमारी को ट्रिगर करती है। हाल के दिनों में 80% लोगों ने बताया है की ट्रामा, प्रियजन की मौत या नौकरी की कमी के कारण सोरायसिस में बढ़ोतरी हुई है। डॉक्टरों का मानना है कि बाहरी तनाव एक प्रमुख भूमिका निभाती है और रोगी की प्रतिरक्षा प्रणाली में वंशगत जन्मजात दोष के लिए ट्रिगर के रूप में कार्य करता है।

त्वचा पर चोट और कुछ तरह की दवा इस बीमारी को बढ़ा सकती है, जिसमें विशेष प्रकार के ब्लड प्रेशर गोलियां (बीटा ब्लॉकर्स), इबुप्रोफेन दवाएं और एंटी-मलेरिया दवाएं भी शामिल हैं। इस बीमारी के लिए घरेलू उपचार के रूप में, एक मोटी क्रीम या लोशन लगा कर पेट्रोलियम जेली या जैतून का तेल जैसे मलहम के साथ नमी को बना कर रखने से इस बीमारी को कम करने में मदद करता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि शुष्क त्वचा खुजली और जलन को और गंभीर बना देती है।

हालांकि, गर्मियों के महीनों के दौरान बहुत मोटी क्रीम का उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि क्रीम के साथ मिश्रित पसीना अक्सर सोरायसिस को और भी खराब बनाता है।

सोरायसिस के लिए एक अन्य घरेलु उपाय बिस्तर पर जाने से पहले अपनी त्वचा को प्लास्टिक या पट्टी से लपेटना है और सुबह में ठंडे पानी के साथ धीरे-धीरे क्षेत्रों को धोना है। यह समय के साथ स्केलिंग को कम कर सकता है। सोरायसिस आमतौर पर पारिवारिक बीमारी के रूप में चलता है, लेकिन फिर भी यह पीढ़ियों में छोड़ सकता है। परिवार का बुजुर्ग सदस्य अपने इस बीमारी को अपने पोते या परपोते को पास कर सकते हैं, लेकिन उनका बेटा कभी भी इस बीमारी को विकसित नहीं कर सकता है। यद्यपि सोरायसिस शर्मनाक और तनावपूर्ण हो सकता है, लेकिन इस बीमारी के अधिकांश प्रकोप अन्य त्वचा की तुलना में तुलनात्मक रूप से हानिरहित हैं। उचित उपचार के साथ इस बीमारी से कुछ महीनों में ही लक्षण काम होने लग जाते हैं |

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *